ख्वाबों के तले सब के सब दबे जा रहे हैं
रोज नये ख़्वाब दिलों में पले जा रहे हैं
बहुतों को पसंद न आया गांव की मिट्टी,तो
बेच घर पुरखों के शहर चले जा रहे हैं
एक चौखट हुआ करता पुराने घरों में
मान तोड़ अब ऊंचे हठ ढले जा रहे है।
बिजली लौट जा मिरे गांव के ठिकानों से
वो कुम्हार के घर बच्चे मरे जा रहे हैं
आँगन,एक तुलसी पौधा था मिरे घर भी
चीजों के ठिकाने अब बदले जा रहे हैं।
~ सोनु किशोर
©sonu kishor
ख्वाबों के तले सब के सब दबे जा रहे हैं
रोज नये ख़्वाब दिलों में पले जा रहे हैं
बहुतों को पसंद न आया गांव की मिट्टी,तो
बेच घर पुरखों के शहर चले जा रहे हैं
एक चौखट हुआ करता पुराने घरों में
मान तोड़ अब ऊंचे हठ ढले जा रहे है।