"मेरे खामोश अल्फ़ाज़ मेरी बेआवाज़ धड़कन
मेरे सूखे अश्क मेरी गीली सांसे
सब मिल कर बस आरज़ू-ए-मोहब्बत में शोर करते हैं।
जो तेरी एक नज़र ए इनायत हो तो इस बाज़ार में भी कुछ सन्नाटा पसरे।
आशुतोष कुमार 'कुँवर'"
मेरे खामोश अल्फ़ाज़ मेरी बेआवाज़ धड़कन
मेरे सूखे अश्क मेरी गीली सांसे
सब मिल कर बस आरज़ू-ए-मोहब्बत में शोर करते हैं।
जो तेरी एक नज़र ए इनायत हो तो इस बाज़ार में भी कुछ सन्नाटा पसरे।
आशुतोष कुमार 'कुँवर'