साँझ शमा परवाने को जलाना सिखाती है, शाम सूरज को ढल | हिंदी शायरी

"साँझ शमा परवाने को जलाना सिखाती है, शाम सूरज को ढलना सिखाती है, मुसाफिर को ठोकरों से होती तो हैं तकलीफें, लेकिन ठोकरें ही एक मुसाफिर को चलना सिखाती हैं। ©Official Rajput A2Z"

 साँझ शमा परवाने को जलाना सिखाती है, शाम सूरज को ढलना सिखाती है, मुसाफिर को ठोकरों से होती तो हैं तकलीफें, लेकिन ठोकरें ही एक मुसाफिर को चलना सिखाती हैं।

©Official Rajput A2Z

साँझ शमा परवाने को जलाना सिखाती है, शाम सूरज को ढलना सिखाती है, मुसाफिर को ठोकरों से होती तो हैं तकलीफें, लेकिन ठोकरें ही एक मुसाफिर को चलना सिखाती हैं। ©Official Rajput A2Z

ठोकर ही इन्सान को चलना सिखाती हैं।
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