इसी उम्मीद में मै ग़म को बढ़ा लेता हूं। कि इक रोज़ | हिंदी शायरी

"इसी उम्मीद में मै ग़म को बढ़ा लेता हूं। कि इक रोज़ तू मुझको समझ सके शायद। ©SOGVAAR"

 इसी उम्मीद में मै ग़म को बढ़ा लेता हूं।
कि इक रोज़ तू मुझको समझ सके शायद।

©SOGVAAR

इसी उम्मीद में मै ग़म को बढ़ा लेता हूं। कि इक रोज़ तू मुझको समझ सके शायद। ©SOGVAAR

"शायरी"

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