नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, ख्वाब आँखों मे | हिंदी Shayari

"नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, ख्वाब आँखों में ही थे, और रात निकल गई। उम्र का सफर भी ऐसा ही महसूस होता है, बस पलकों में ठहरी, और ज़िंदगी फिसल गई। ©UNCLE彡RAVAN"

 नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
ख्वाब आँखों में ही थे, और रात निकल गई।
उम्र का सफर भी ऐसा ही महसूस होता है,
बस पलकों में ठहरी, और ज़िंदगी फिसल गई।

©UNCLE彡RAVAN

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, ख्वाब आँखों में ही थे, और रात निकल गई। उम्र का सफर भी ऐसा ही महसूस होता है, बस पलकों में ठहरी, और ज़िंदगी फिसल गई। ©UNCLE彡RAVAN

#coldwinter

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