दरारे बंद कर दी है दीवारों की मैने अपनी तरफ से
अब वो शख्स मुझे देखने नहीं आता
भटकता फिर रहा हूँ मै राहो मे जाने कब से
तुम कहा हो ये पूछने अब वो नहीं आता
मै मुस्कुराता हूँ खुल के हस नहीं पता
वो अब मुझे गुदगुदाने नहीं आता
छुप कर रहता है मुझसे अब हर कही
वो अब खुद को भी नजर नहीं आता
जख्मो को खुरेदना बंद कर दिया है मैने
वो अब हाथों से मरहम लगाने नहीं आता
अब आते है तो पी लेता हूँ आशुओ को मै
अब वो शख्स मुझे मानने नहीं आता
दरारे बंद कर दी है दीवारों की मैने अपनी तरफ से
अब वो शख्स मुझे देखने नहीं आता
©shailesh pandit intijaar
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