पल्लव की डायरी
वैश्वीकरण अब जी का जंजाल बन गया
जगत सारा इससे कराहता है
हर बस्तु कीमत के साये में है
जो सन्तुलन जीवन का खा जाता है
होड़ लगी है कमाने की
स्वास्थ्य और उम्र अधीर हो जाता है
पैमाना कुछ निश्चित नही बचा है
धोखा देकर पहाड़ पैसो का बनाया जाता है
उद्योग पति खाद्यान्न बेचने पर आ गये
रिसर्च के काम सम्हाले नही जाते है
छोटे छोटे व्यापार व्यापारियों के खा गये
सरकार पर दबाब बनाकर
महँगाई आसमान चढ़ाते है
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
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