यथार्थ सत्य यही था कि तुम भी मुझसे प्रेम करते थे ल | हिंदी कविता

"यथार्थ सत्य यही था कि तुम भी मुझसे प्रेम करते थे लेकिन तुम दृष्टि झुका लेते थे, छुपाते थे मुझसे के मैं तुम्हारा अंतर्मन न पढ़ सकूं। पर मैं जानती थी तुम्हारे अंदर के अन्तर्द्वद को और मैं भी निःशब्द रह जाती थी तुम्हारा प्रेम अब अतीत है मेरा लेकिन कभी कभी बहुत याद आते हो जब सूर्यास्त होने को होता है पंछी अपने अपने ठिकानों को होते हैं सब कुछ व्यवस्थित हो जाता है समय के साथ लेकिन कुछ सही नही हुआ तो मेरा मन जो निरंतर तुम्हारे पीछे ही भाग रहा है ©Richa Dhar"

 यथार्थ सत्य यही था कि तुम भी मुझसे प्रेम करते थे
लेकिन तुम दृष्टि झुका लेते थे, छुपाते थे मुझसे
के मैं तुम्हारा अंतर्मन न पढ़ सकूं। 
पर मैं जानती थी तुम्हारे अंदर के अन्तर्द्वद को
और मैं भी निःशब्द रह जाती थी
तुम्हारा प्रेम अब अतीत है मेरा
लेकिन कभी कभी बहुत याद आते हो
जब सूर्यास्त होने को होता है
पंछी अपने अपने ठिकानों को होते हैं
सब कुछ व्यवस्थित हो जाता है समय के साथ
लेकिन कुछ सही नही हुआ तो मेरा मन
जो निरंतर तुम्हारे पीछे ही भाग रहा है

©Richa Dhar

यथार्थ सत्य यही था कि तुम भी मुझसे प्रेम करते थे लेकिन तुम दृष्टि झुका लेते थे, छुपाते थे मुझसे के मैं तुम्हारा अंतर्मन न पढ़ सकूं। पर मैं जानती थी तुम्हारे अंदर के अन्तर्द्वद को और मैं भी निःशब्द रह जाती थी तुम्हारा प्रेम अब अतीत है मेरा लेकिन कभी कभी बहुत याद आते हो जब सूर्यास्त होने को होता है पंछी अपने अपने ठिकानों को होते हैं सब कुछ व्यवस्थित हो जाता है समय के साथ लेकिन कुछ सही नही हुआ तो मेरा मन जो निरंतर तुम्हारे पीछे ही भाग रहा है ©Richa Dhar

यथार्थ✍🏼✍🏼✍🏼

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