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कोई किसी को कुछ नहीं मानता। जब तक उसके बारे में कुछ नहीं जानता। जब जान पहचान अच्छी हो जाती है फिर वो दूध में मक्खी हो जाती है। ये फैशन है और अब इसी फैशन का दौर चल रहा है।
दुर्भाग्य से जब कोई अपने बारे में सब बता देता है। फिर वहीं होता है जो मक्खी के साथ होता है। उसे हर कहीं से निकाल कर फेंका जाता है। या फिर यूं कह सकते है कि फुटबॉल की तरह उसके साथ खेला भी जाता है और दुत्कारा भी जाता है। बार - बार ज़ख्मी होने से घाव काफ़ी गहरे और हालात खस्ते हो जाते हैं।
जिसकी भावनाओं के साथ खेला जाता है, वो अंदर से टूटे कांच की तरह हो जाता है। जब भी बात करो दिल से करो। दिल खोल कर करोगे तो सामने वाले को आपकी भावनाओं से खेलने का खुला न्यौता है।
शिखा शर्मा
©Shikkha Sharrma
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