नामर्दों की भीड़ है मुर्दा समाज है
निष्ठुर हृदय संवेदना का मोहताज है
हैवानियत को देख सुन हर नजर सवालिया है
चुप है जो अब तक भी वो मानसिक दिवालिया है
नोच रहे थे गिद्ध उन्हें गीदड़ों के सामने
निकलकर आया नहीं जिस्म कोई ढांकने
भारतीयों का सिर क्यूँ शर्म से झुका नहीं
पूछो ये सिलसिला क्यूँ अंत तक रुका नहीं
कैसे तुमको नींद आई और कैसे तुम रह पाए
इतनी हिंसा इतनी जुल्मत आखिर कैसे सह पाए
ये कहाँ का सुशासन है और कैसी सुरक्षा है
अब तो यकीं हो चला कि नपुंसक व्यवस्था है
इन आँखों में लहू है और जहन में उबाल है
उस 56 इंची सीने से मेरा इक सवाल है
घर जलता देखकर क्यूँ एक पल ठहरे नहीं
तुम चुल्लू भर पानी में क्यूँ डूब के मरे नहीं
©Rashmi rati
#मणिपुर