नज़र से नज़र की रही राज़दारी
चढ़ी इक दफ़ा तो न उतरी खुमारी ।
न कुछ भी जुबां का है किरदार कोई
नज़र से नज़र ने करी बात सारी ।
नज़र को नज़र की लगी जब नज़र तो
नज़र ने नज़र की नज़र है उतारी ।
नज़र को ज़दों में सके बांध कब वो
नज़र के ही हाथों रही बात सारी ।
लिये हाथ में उस कलाई के बंधन
नज़र की नज़र में कटी रात सारी
नज़र ने नज़र का कहा भी न टाला
नज़र ने नज़र की रखी बात सारी ।
नज़र की रही है दुनियां अनोखी
नज़र ही नज़र को रही सिर्फ़ प्यारी ।
मुहब्बत बुरी जब निगाहों में आई
मिली मात उनको नज़र से करारी ।
कहे आज नीतू कि हमने भी यारों
नज़र में नज़र की ये कश्ती उतारी ।
©Nitu Singh जज़्बातदिलके
नज़र से नज़र की रही राज़दारी
चढ़ी इक दफ़ा तो न उतरी खुमारी ।
न कुछ भी जुबां का है किरदार कोई
नज़र से नज़र ने करी बात सारी ।
नज़र को नज़र की लगी जब नज़र तो
नज़र ने नज़र की नज़र है उतारी ।