आरज़ू भी कहां सुकूं देती,
सांस आती है पर नहीं जाती।
हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी,
आवाज कहीं असर नहीं पाती।
यह सफर, यह तमाम रास्ते,
खुद से मिलने की खबर नहीं लाती।
किससे कहें ये दिल के किस्से,
कोई सुनता है पर नहीं सुन पाती।
आरज़ू और भी बढ़ती जाती है,
मगर मंज़िल की कोई खबर नहीं आती।
हर लम्हा ठहर-सा जाता है,
जैसे सांस चलती, मगर नहीं आती।
किसी मोड़ पर शायद जवाब मिले,
पर सवालों की गूंज थम नहीं पाती।
हमने खुद को भुला दिया है यहां,
और जिंदगी ये समझ नहीं पाती।
©नवनीत ठाकुर
#नवनीतठाकुर
आरज़ू भी कहां सुकूं देती,
सांस आती है पर नहीं जाती।
हर दुआ जैसे बेमकसद ठहरी,
कहीं आवाज असर नहीं पाती।
यह सफर, यह तमाम रास्ते,
खुद से मिलने की खबर नहीं लाती।