पता है, कुछ नही है पर बहुत कुछ है,,,
खाली जेब के साथ टूटे ख़्वाब बहुत है,,,
पहले सब मेरे अपने थे, अब मेरे अपने भी मेरे नही है,,,
जो दोस्त साथ थे वो भी मसरूफ अपनी उलझनों में है,,,
शोहरत के आईने ने अक्स मेरा तोड़ दिया,,,
टूटा हुआ मै मुझ में जुड़ने की ताक़त अब नही है,,,
कामयाबी की कहानियां, फसाने मेरे बहुत है,,,
नाकामयाबी के किस्से भी मेरे कुछ कम नहीं है,,,
बात मेरी करू तो क्या हु मै, एक अदना सा आदमी,,,
दौलत नही है तो रिश्तों मे अकेलापन भी बहुत है,,,
मुहब्बत इखलात की बात भला कोन करे अब हमसे,,,
इस दर्द-ए-दिल में शिफा, "फैज़" की शायरी में बहुत है,,,
©Faiz Khan