शीर्षक - तुम्हारी छुअन
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तुम्हारे छुअन से पता ही नहीं चलता
फूर्र से ' पंख फैलाकर ,
मन कहाँ उड़ जाता है
तुम्हारा आना करीब पाना -
तुम्हारी सोच का छुअन पाना
तुम्हारी हंसी का छुअन पाना
तुम्हारी नज़र का छुअन पाना
तुम्हारी शरारतों का छुअन पाना
आत्मसात हो जाता है
जैसे मेरा अस्तित्व तुम्हारे संग
मैं , मैं सा नहीं रहता
तब तुम , तुम सा नहीं रहती ,
सच में
हमारे बीच प्रेम अलौकिक नृत्य करता है
डरता हूं सच में मन ही मन
उन पलो को जीने के बाद
बिछरण के विरह से भ्रमीत होकर ।
तुम्हारे जाने के बाद,
ढूंढता हूं तुम्हें ख्यालों की समंदर में -
अपने होंठो पर अंकित तुम्हारे चुंबन में
चाय के कप पर तुम्हारी छुअन में
चादर में मौजूद सिलवटों पर ,
आईने पर भूली बिंदी
जैसे तुम्हारी रूह
मुझे हर पल तकती रहती है
सच में
क्योंकि - न जाने क्यों
तुम थोड़ा सा खुद को
मेरे पास भूल आती हो
बार - बार और हर बार
अपनी छुअन मेरे डायरी पर लिख जाती हो ....
@निशीथ
©Nisheeth pandey
#Chhuan
शीर्षक - तुम्हारी छुअन
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तुम्हारे छुअन से पता ही नहीं चलता
फूर्र से ' पंख फैलाकर ,
मन कहाँ उड़ जाता है