Alone तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा हमारा जिक् | हिंदी शायरी

"Alone तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा हमारा जिक्र मुसलसल उसी के बाद उठा वो जब तलक थी तलब की सुनी नहीं दस्तक मजीद प्यास का मंज़र नदी के बाद उठा अजी ये छोड़िए जी कर के क्या गुनाह किया ये क्या हिसाब सा नेकी बदी के बाद उठा न तंज़ था न शिकायत न फिक्र थी न मलाल अजब ही शोर मेरी जिंदगी के बाद उठा विपिन चौहान मन"

 Alone  तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा
हमारा जिक्र मुसलसल उसी के बाद उठा

वो जब तलक थी तलब की सुनी नहीं दस्तक
मजीद प्यास का मंज़र नदी के बाद उठा

अजी ये छोड़िए जी कर के क्या गुनाह किया
ये क्या हिसाब सा नेकी बदी के बाद उठा

न तंज़ था न शिकायत न फिक्र थी न मलाल 
अजब ही शोर मेरी जिंदगी के बाद उठा





विपिन चौहान मन

Alone तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा हमारा जिक्र मुसलसल उसी के बाद उठा वो जब तलक थी तलब की सुनी नहीं दस्तक मजीद प्यास का मंज़र नदी के बाद उठा अजी ये छोड़िए जी कर के क्या गुनाह किया ये क्या हिसाब सा नेकी बदी के बाद उठा न तंज़ था न शिकायत न फिक्र थी न मलाल अजब ही शोर मेरी जिंदगी के बाद उठा विपिन चौहान मन

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