Alone तमाम बज़्म की पाबंदगी के बाद उठा
हमारा जिक्र मुसलसल उसी के बाद उठा
वो जब तलक थी तलब की सुनी नहीं दस्तक
मजीद प्यास का मंज़र नदी के बाद उठा
अजी ये छोड़िए जी कर के क्या गुनाह किया
ये क्या हिसाब सा नेकी बदी के बाद उठा
न तंज़ था न शिकायत न फिक्र थी न मलाल
अजब ही शोर मेरी जिंदगी के बाद उठा
विपिन चौहान मन