रोज एक नई इबारत लिखती है सियासत सोचता कौन है अवाम | हिंदी कविता

"रोज एक नई इबारत लिखती है सियासत सोचता कौन है अवाम का नेता तो होता है बस नाम का जनता को दिखाकर ख्याली ख्वाब जोड़े खुद के लिए माल असबाब ना कभी चित, ना कभी पट चलती हरवक्त इनकी कपट ©Kamlesh Kandpal"

 रोज एक नई इबारत
लिखती है सियासत
सोचता कौन है अवाम का
नेता तो होता है बस नाम का
जनता को दिखाकर ख्याली ख्वाब
जोड़े खुद के लिए माल असबाब
ना कभी चित, ना कभी पट
चलती हरवक्त इनकी कपट

©Kamlesh Kandpal

रोज एक नई इबारत लिखती है सियासत सोचता कौन है अवाम का नेता तो होता है बस नाम का जनता को दिखाकर ख्याली ख्वाब जोड़े खुद के लिए माल असबाब ना कभी चित, ना कभी पट चलती हरवक्त इनकी कपट ©Kamlesh Kandpal

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