मैने ना,तुम्हारी खामोशी से इश्क़ किया है
तुम्हारे लफ़्ज़ मेरे हिस्से में,आए ही कहा
शायद कोई और हो,जो काबिल हो
मुझे वैसे शिक़ायत भी नहीं,तुम से
मैं हु भी अजीब सी,पिछे ही पड़ जाती हु
मैने तुम्हे झलक,दो झलक देख सकने के
इंतेज़ार से इश्क़ किया हैं
तुम और कभी इज़हार करोगे मोहब्ब्त का
नामुमकिन,इतनी क़ाबिल होती तो
शायद साथ होते हम
मैने इस कभी खत्म न होने वाले ऐतबार से इश्क़ किया हैं
लोग करते होंगे क़ूबूलियत पर लेकिन
मैंने तो
तुम्हारे इनकार से इश्क़ किया है
मुझे कुछ भी नहीं चाहिए तुम से
तुम्हारी फिक्र तुम्हारे खैर ओ शुमार से किया हैं
तुम्हारी मौजूदगी तुम्हारी खुशबू तुम्हारी नज़रे,तुम्हारे इज़्तेरार से किया है
कहा पा सकूंगी तुम को मै
तुम्हे देख कर फ़िर भी हर बार किया हैं
नहीं मेरी आदत नहीं यू इस तरह बिछ जाना लेकिन
मैं वो मिट्टी चूम लू जहां से गुजरो तुम
मैने जिस्म की ज़द से कही आगे
तुम से प्यार किया हैं
कोई ख़्वाइश नहीं हैं मुझे के तुम मुझे कोई
ओहदा दो ज़िंदगी में अपनी
मैने खामोशी से गुमनाम सा प्यार किया हैं
करते होंगे लोग फायदों को सौदे
मैं तमाम नुकसान उठा के भी तुम को ही चुन लू
तुम्हारे हिस्से की ज़मीन,सच,बाते जितनी भी गहरी हो
मुझ से कहो सारी बैठ कर सुन लू
तुम से चाहा नहीं हैं कुछ,तुम्हे चाहा है
वो और लोग हैं,जो बदल लेते है माज़ी अपना
मैने इबादत सरीखा इश्क़ तुम से हर बार किया है
मैने मान लिए हर फैसले,तुम जो भी करो
ये मेरे दिल पर तो असर नहीं कर सकेंगे मग़र
एक ही तो शर्त है,खुश रहो जहां भी रहो
शायद नहीं होगा के,हम साथ चल सकेंगे अगर
मैं तुम्हे याद नहीं रखतीं,तुम सांसों की तरह बसते हो मुझ में
जब जब तुम करीब से गुजरे,कई बार किया हैं
मैने बेहद मासूम सा इश्क़ तुम से
हर बार किया हैं....
©ashita pandey बेबाक़
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