न जाने क्यूॅं ? लेकिन कुछ लोगों को
अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास ही नहीं होता।
दूसरों का बोझ उठाने की उम्र में भी
ऐसे लोग दूसरों पर बोझ बन कर रहते हैं।
चाहे किसी भी तरह इन्हें समझाया जाए लेकिन
फ़िर भी अपनी ज़िम्मेदारियों को ये लोग नहीं समझते।
और ग़ुरुर तो इतना होता है ऐसे लोगों में कि जैसे
इनके बिना ज़माने भर के सारे काम ही रुक जाएंगे।
फ़िर ऐसे लोगों को ज़िंदगी का कोई बहुत बड़ा हादसा ही
बेहतरीन सबक़ सिखा देता है और अपनी
ज़िम्मेदारियों का एहसास भी करा देता है।
लेकिन क्या ऐसे किसी हादसे का
इंतज़ार करना ज़रूरी होता है??
क्यूॅं वक़्त रहते इंसान समझदारी से काम नहीं लेता है??
©Sh@kila Niy@z
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