White दिन कट रहे हैं कश्मकश-ए-रोज़गार में दम घुट र | हिंदी Poetry

"White दिन कट रहे हैं कश्मकश-ए-रोज़गार में दम घुट रहा है साया-ए-अब्र-ए-बहार में आती है अपने जिस्म के जलने की बू मुझे लुटते हैं निकहतों के सुबू जब बहार में गुज़रा उधर से जब कोई झोंका तो चौंक कर दिल ने कहा ये आ गए हम किस दयार में मैं एक पल के रंज-ए-फ़रावाँ में खो गया मुरझा गए ज़माने मिरे इंतिज़ार में है कुंज-ए-आफ़ियत तुझे पा कर पता चला क्या हमहमे थे गर्द-ए-सर-ए-रह-गुज़ार में ©Jashvant"

 White दिन कट रहे हैं कश्मकश-ए-रोज़गार में
दम घुट रहा है साया-ए-अब्र-ए-बहार में

आती है अपने जिस्म के जलने की बू मुझे
लुटते हैं निकहतों के सुबू जब बहार में

गुज़रा उधर से जब कोई झोंका तो चौंक कर
दिल ने कहा ये आ गए हम किस दयार में

मैं एक पल के रंज-ए-फ़रावाँ में खो गया
मुरझा गए ज़माने मिरे इंतिज़ार में

है कुंज-ए-आफ़ियत तुझे पा कर पता चला
क्या हमहमे थे गर्द-ए-सर-ए-रह-गुज़ार में

©Jashvant

White दिन कट रहे हैं कश्मकश-ए-रोज़गार में दम घुट रहा है साया-ए-अब्र-ए-बहार में आती है अपने जिस्म के जलने की बू मुझे लुटते हैं निकहतों के सुबू जब बहार में गुज़रा उधर से जब कोई झोंका तो चौंक कर दिल ने कहा ये आ गए हम किस दयार में मैं एक पल के रंज-ए-फ़रावाँ में खो गया मुरझा गए ज़माने मिरे इंतिज़ार में है कुंज-ए-आफ़ियत तुझे पा कर पता चला क्या हमहमे थे गर्द-ए-सर-ए-रह-गुज़ार में ©Jashvant

#gazal# urdu poetry

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