एक वृक्ष ने हर मौसम में छाया दी.
कभी फल दिया तो कभी फूल दिया.
कल्पवृक्ष की तरह हर मन्नत पूरी की.
अब बेबस सा खडा है वो, ना वो फूल है ना वो छाया
फिर भी उसकी इच्छा है कि और कुछ दे सके.
आशाओं के पंख थे कि छाया में बहुत से खुशबूदार, फलदार, औषधीय गुण वाले पेड़ बनेंगे.
मेरी छाया में लहलायेगी कितनी बगिया.
इन्हीं उम्मीदों में झेलता रहा प्रचंड धूप, कड़ाके की ठंड और मूसलाधार बारिश को
कुछ हुआ भी की तेजी से बढ़े पौधे कलियां भी खिली पर साथ में ढेर सारे कांटे लेकर जो चुभते हैं उसी वृक्ष को
खरपतवार भी साथ में है, कुछ परजीवी पादप उग आए हैं.
अब वृक्ष बस सोचता है कि क्यों सही मैंने इतनी तपन इन कुकुरमुत्तों की परवरिश के लिए.
©SoldierMohan