मुसाफ़िर का मंज़िल मुक़म्मल नहीं होता। क्यों कि हर ठ | हिंदी शायरी

"मुसाफ़िर का मंज़िल मुक़म्मल नहीं होता। क्यों कि हर ठिकाना उसका आख़री नहीं होता।। ©BINOदिनी"

 मुसाफ़िर का मंज़िल 
मुक़म्मल नहीं होता।
क्यों कि हर ठिकाना उसका
आख़री नहीं होता।।

©BINOदिनी

मुसाफ़िर का मंज़िल मुक़म्मल नहीं होता। क्यों कि हर ठिकाना उसका आख़री नहीं होता।। ©BINOदिनी

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