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यादों का बाज़ार
एक गुप्त गली में, दो भूले-बिसरे इमारतों के बीच, एक ऐसा बाज़ार था जिसे कोई दो बार नहीं ढूंढ सकता था। यह बाज़ार सिर्फ़ बारिश होने पर खुलता था। लोग इसकी चर्चा तो करते थे, पर ज्यादातर इसे केवल एक अफ़वाह मानते थे। जब तक कि एक दिन सलीम उसे नहीं ढूंढ पाया।
वह पुराने गलियों में भीगता हुआ घूम रहा था, जब उसने एक धुंधली रोशनी को एक गली के अंत में देखा, जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा था। जिज्ञासावश, वह अंदर चला गया। वहां मिट्टी की गंध और कुछ मीठा सा महसूस हो रहा था।
गली के दोनों किनारों पर स्टॉल लगे थे, और हर दुकानदार कुछ ऐसा बेच रहा था जो दिखाई नहीं दे रहा था। एक दुकान बचपन के घर की महक बेच रही थी; दूसरी, पहली मोहब्बत का स्वाद। एक फटेहाल आदमी बिना रोक-टोक हंसने की कला बेच रहा था—वो हंसी जो दिल से आती है। लेकिन सलीम की नज़र एक कोने की दुकान पर पड़ी, जहाँ एक औरत बैठी थी जिसके आँखों में समय से भी अधिक उम्र थी।
वो यादें बेच रही थी।
"कोई एक चुन लो," उसने कहा, उसकी आवाज़ धीमी थी, पर प्रभावशाली।
सलीम झिझका। "ये यादें किसकी हैं?"
"उनकी
©Aadil Khan
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