समाज के बंधन ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते | हिंदी कविता

"समाज के बंधन ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं हो जाते हैं दूर जो रहते दिल के करीब होते हैं।। अपने लिए तो इंसान कभी जी नहीं पाता है समाज के संसार में कहीं बिखर जाता है।। चाहत मिलती नहीं सभी को ज़िंदगी में मिलती है उनको, जिनके अच्छे नसीब होते है ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं।। राधा और कृष्ण का प्रेम सदा से अमर रहा है कितना विरह सहा सीता ने, कितना राधा ने सहा है ।। दूर क्यों हो जाते हैं जो दिल ऐ अज़ीज़ होते हैं ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं ।। ©Sushil Patial"

 समाज के बंधन

ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं
हो जाते हैं दूर जो रहते दिल के करीब होते हैं।।

अपने लिए तो इंसान कभी जी नहीं पाता है
समाज के संसार में कहीं बिखर जाता है।।

चाहत मिलती नहीं सभी को ज़िंदगी में
मिलती है उनको, जिनके अच्छे नसीब होते है
ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं।।

राधा और कृष्ण का प्रेम सदा से अमर रहा है
कितना विरह सहा सीता ने, कितना राधा ने सहा है ।।

दूर क्यों हो जाते हैं जो दिल ऐ अज़ीज़ होते हैं
ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं ।।

©Sushil Patial

समाज के बंधन ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं हो जाते हैं दूर जो रहते दिल के करीब होते हैं।। अपने लिए तो इंसान कभी जी नहीं पाता है समाज के संसार में कहीं बिखर जाता है।। चाहत मिलती नहीं सभी को ज़िंदगी में मिलती है उनको, जिनके अच्छे नसीब होते है ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं।। राधा और कृष्ण का प्रेम सदा से अमर रहा है कितना विरह सहा सीता ने, कितना राधा ने सहा है ।। दूर क्यों हो जाते हैं जो दिल ऐ अज़ीज़ होते हैं ये समाज के बंधन में कितने अजीब होते हैं ।। ©Sushil Patial

समाज के बन्धन

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