एक तरफ बर्बाद बस्तियां एक तरफ हो तुम,
एक तरफ डूबती कश्तियां-एक तरफ हो तुम,
एक तरफ है सूखी नदियां एक तरफ हो तुम,
एक तरफ है प्यासी दुनियां एक तरफ हो तुम.
अजी वाह ! क्या बात तुम्हारी, तुम तो पानी के व्यापारी,
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी, बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी,
सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समंदर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना-सरयू की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो.
उफ !! तुम्हारी ये खुदगर्जी,
चलेगी कब तक ये मनमर्जी, जिस दिन डोलेगी ये धरती,
सर से निकलेगी सब मस्ती, महल-चौबारे बह जायेंगे,
खाली रौखड़ रह जायेंगे. बूंद-बूंद को तरसोगे जब.
बोल व्यापारी-तब क्या होगा ?
नगद उधारी तब क्या होगा ??
गिरीश तिवारी "गिर्दा"
©HUMANITY INSIDE
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