अमीर अक्सर दौलत-शोहरत पे मरते हैं
हम ठहरे फ़कीर हम मोहब्बत पे मरते हैं
ये काली धुंधली रातें लिबास हैं जिनके
यही लोग उजियारे में शराफ़त पे मरते है
माटी से जनम माटी में मरन तय है
कम्बख़त हम हैं कि जन्नत पे मरते हैं
शाख से टुटे हुए फलने फूलने लगते हैं
बुढ़े दरख़्त हाथ फैलाए गुरबत पे मरते हैं
आज जिनका चोर -उच्चकों से राब्ता है
यही लोग आगे जाके सियासत पे मरते हैं
©Harlal Mahato
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