वो भारत का रखवाला, शत्रु पर हम टूट पड़ते, रूप काली धार कर।
जब कभी भी शत्रु आया दम लिए हैं मार कर
हम नहीं जाते कहीं भी, शान्ति में विश्वास है।
आ गए जो घर हमारे,फिर लड़े ललकार कर।
हम शिवा जी और राणा, बोस भी हम ही हुए।
उम्र गुज़री है हमारी, युद्ध को हुंकार कर।
छेड़ते हैं हम नहीं , छोड़ते भी हम नहीं।
घाव का हम घाव देते सामने प्रतिकार कर
वो कभी भी कम न होगा , दे गए विश्वास जो।
रक्त को स्याही बनाकर, लिख गए इतिहास जो।
होलियाँ खेली इन्होंने , गोलियों को चूमकर।
मौत को ही वर लिया था डोलियों को भूलकर।
कौन था प्रतिबंध तुम पर, मर मिटे जो देश को
चैन से बैठे नहीं तुम , जीवनों को धूल कर।
चंद्र शेखर और पृथ्वी, अनगिनत हैं नाम ये।
देवता भी कर सकें ना कर गए जो काम ये।
प्रश्न चिन्हों को लगाते, सैकड़ों मिल जाएँगे।
देश पर बलिदान होना , हैं बड़े आराम ये।
मुफ़्त में तो कुछ किसी को, है कभी मिलता नहीं।
मुफ़्त की बातें न होती , देश यह जलता नहीं।
कुछ निकम्मे हैं चुनावी, झूठ का धंधा किया।
सिर्फ बातों से कभी भी, देश तो चलता नहीं।
©सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र)
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