कुछ करने को जब चलते निराश मन से स्वम ढर जाते भीतर | हिंदी कविता

"कुछ करने को जब चलते निराश मन से स्वम ढर जाते भीतर कितनी उलझने बसा लेते उड़ने को हर पल आतुर रहते किन्तु भरोसा पंखों पर नहीं करते भाग्य से हर पल भिछा मांगते किन्तु भरोसा भाग्य पर नहीं करते ©Kavitri mantasha sultanpuri"

 कुछ करने को जब चलते
निराश मन से स्वम ढर जाते
भीतर कितनी उलझने बसा लेते
उड़ने को हर पल आतुर रहते
किन्तु भरोसा पंखों पर नहीं करते
भाग्य से हर पल भिछा मांगते
किन्तु भरोसा भाग्य पर नहीं करते

©Kavitri mantasha sultanpuri

कुछ करने को जब चलते निराश मन से स्वम ढर जाते भीतर कितनी उलझने बसा लेते उड़ने को हर पल आतुर रहते किन्तु भरोसा पंखों पर नहीं करते भाग्य से हर पल भिछा मांगते किन्तु भरोसा भाग्य पर नहीं करते ©Kavitri mantasha sultanpuri

#निराश
#KavitriMantashaSultanpuri

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