वो गुनगुनाती धूप में छत पर भाग जाना वो कोहरे की चा | हिंदी Poetry

"वो गुनगुनाती धूप में छत पर भाग जाना वो कोहरे की चादर में सबकुछ धुंधला सा नजर आना वो मोतियों से चमकते ओस की बूंदों का खिलखिलाना वो चाय की चुस्कियों का लुफ्त उठाना वो ठिठुरती हुई हथेलियों का रगड़ खाना ऐ सर्दी कुछ इस तरह से तुम्हारा आना मानो लौट आया हो कोई गुजरा जमाना ©Garima Srivastava"

 वो गुनगुनाती धूप में छत पर भाग जाना
वो कोहरे की चादर में सबकुछ
धुंधला सा नजर आना
वो मोतियों से चमकते ओस की
 बूंदों का खिलखिलाना
वो चाय की चुस्कियों का लुफ्त उठाना
वो ठिठुरती हुई हथेलियों का रगड़ खाना
ऐ सर्दी कुछ इस तरह से तुम्हारा आना
मानो लौट आया हो कोई गुजरा जमाना

©Garima Srivastava

वो गुनगुनाती धूप में छत पर भाग जाना वो कोहरे की चादर में सबकुछ धुंधला सा नजर आना वो मोतियों से चमकते ओस की बूंदों का खिलखिलाना वो चाय की चुस्कियों का लुफ्त उठाना वो ठिठुरती हुई हथेलियों का रगड़ खाना ऐ सर्दी कुछ इस तरह से तुम्हारा आना मानो लौट आया हो कोई गुजरा जमाना ©Garima Srivastava

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