कैसे चढ़ पायेगी सफलता की सीढ़ी,
जब अवसाद ग्रस्त है आज युवा पीढ़ी,
मन की उलझन से बच पाने का साधन,
बना आज व्यवसाय है बिकती पंजीरी,
पथ को कंटक पूर्ण देख मत घबराना,
जीवन पथ की राह बहुत टेढ़ी-मेढ़ी,
छद्म मान्यताओं ने जकड़े पांव यहां,
दौड़ नहीं पायेगा काटे बिन बेड़ी,
क्या लेकर आए क्या लेकर जाओगे,
नाहक करते फिरते हो तेरी मेरी,
मजदूरों ने सिखलाया पथ पर चलना,
धुएं की कश में फूंक जला देता बीड़ी,
मिट्टी में मिल जाता है सबकुछ 'गुंजन',
रह जाता अवशेष राख बनकर ढ़ेरी,
---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
#रह जाता अवशेष#