**समझदार और मूर्ख का भेद** समझदार वह, जो जमाने | हिंदी कविता

"**समझदार और मूर्ख का भेद** समझदार वह, जो जमाने से लड़े, अपनी औरत की खातिर हर कदम बढ़े। हर आँधी-तूफान से टकराए, उसके सम्मान को सदा बचाए। मूर्ख वह, जो औरत से लड़े, उसकी ही बातों में उलझा रहे। उसके आँसुओं का मोल न जाने, सिर्फ अपने अहम को पहचाने। एक सच्चा साथी, जो ढाल बन जाए, हर मुश्किल घड़ी में साथ निभाए। दुनिया की हर ठोकर से उसे बचाए, उसके सपनों में अपना संसार बसाए। पर जो मूर्ख हो, वह राह भटक जाए, अपनों से ही बैर कर जाए। अपने अहंकार में चूर रहे, उस रिश्ते की डोर को तोड़ दे। समझदार जमाने से टकराता है, अपनी औरत को अपना बनाता है। मूर्ख अपने स्वार्थ में खो जाता है, सच्चे रिश्ते का मोल भूल जाता है। तो तय करो, समझदार बनना है या मूर्ख, रिश्तों में मिठास चाहिए या सिर्फ दूरियाँ। जमाने से लड़ो, पर अपनों से नहीं, अपने प्यार को समझो, उसे खोने से नहीं। ©Writer Mamta Ambedkar"

 **समझदार और मूर्ख का भेद**  

समझदार वह, जो जमाने से लड़े,  
अपनी औरत की खातिर हर कदम बढ़े।  
हर आँधी-तूफान से टकराए,  
उसके सम्मान को सदा बचाए।  

मूर्ख वह, जो औरत से लड़े,  
उसकी ही बातों में उलझा रहे।  
उसके आँसुओं का मोल न जाने,  
सिर्फ अपने अहम को पहचाने।  

एक सच्चा साथी, जो ढाल बन जाए,  
हर मुश्किल घड़ी में साथ निभाए।  
दुनिया की हर ठोकर से उसे बचाए,  
उसके सपनों में अपना संसार बसाए।  

पर जो मूर्ख हो, वह राह भटक जाए,  
अपनों से ही बैर कर जाए।  
अपने अहंकार में चूर रहे,  
उस रिश्ते की डोर को तोड़ दे।  

समझदार जमाने से टकराता है,  
अपनी औरत को अपना बनाता है।  
मूर्ख अपने स्वार्थ में खो जाता है,  
सच्चे रिश्ते का मोल भूल जाता है।  

तो तय करो, समझदार बनना है या मूर्ख,  
रिश्तों में मिठास चाहिए या सिर्फ दूरियाँ।  
जमाने से लड़ो, पर अपनों से नहीं,  
अपने प्यार को समझो, उसे खोने से नहीं।

©Writer Mamta Ambedkar

**समझदार और मूर्ख का भेद** समझदार वह, जो जमाने से लड़े, अपनी औरत की खातिर हर कदम बढ़े। हर आँधी-तूफान से टकराए, उसके सम्मान को सदा बचाए। मूर्ख वह, जो औरत से लड़े, उसकी ही बातों में उलझा रहे। उसके आँसुओं का मोल न जाने, सिर्फ अपने अहम को पहचाने। एक सच्चा साथी, जो ढाल बन जाए, हर मुश्किल घड़ी में साथ निभाए। दुनिया की हर ठोकर से उसे बचाए, उसके सपनों में अपना संसार बसाए। पर जो मूर्ख हो, वह राह भटक जाए, अपनों से ही बैर कर जाए। अपने अहंकार में चूर रहे, उस रिश्ते की डोर को तोड़ दे। समझदार जमाने से टकराता है, अपनी औरत को अपना बनाता है। मूर्ख अपने स्वार्थ में खो जाता है, सच्चे रिश्ते का मोल भूल जाता है। तो तय करो, समझदार बनना है या मूर्ख, रिश्तों में मिठास चाहिए या सिर्फ दूरियाँ। जमाने से लड़ो, पर अपनों से नहीं, अपने प्यार को समझो, उसे खोने से नहीं। ©Writer Mamta Ambedkar

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