क्या कभी देखा है
तुमने दुसरे के व्यक्तित्व
को खुद के नज़रिए से ,
गढली तुमने उसकी एक
अपने अंतस में छवि
जिससे कभी निकल नहीं पाये
जब भी मिलता है वो तुमसे
हंसता बोलता कुछ अपना कुछ तुम्हारा
बांटना चाहता है
तभी एकाएक निकल आता तुम्हारे अंदर से
खुद का गडा पर दुसरे का व्यक्तित्व
तुमको रोक देता है उसके साथ
कुछ बांटने को
फिर तुम व्यथित होकर
कह उठते हो
काश जो आज सब है
वो नहीं होता
पर ये अकेलापन भी नहीं होता।
©अभिव्यक्ति और अहसास -राहुल आरेज
व्यक्तित्व और हम