"श्री गणेशाय नमः"
........ श्री राम चरित मानस........
"श्री भरथ जी की महिमा"
बात उस समय की है जब श्री लक्ष्मण जी को शक्ति बाण
लगा था और श्री हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने के लिए धवला
गिरि पर्वत गए।
उस समय श्री हनुमान जी गए और धवला गिरि पर्वत के
संजीवनी बूटी वाले भाग को उखाड़ कर आकाश मार्ग से चले
रास्ते में अयोध्या पड़ता था। जब अयोध्या के ऊपर से जा रहे
थे तो श्री भरथ जी ने सोचा लगता है कोई अयोध्या पर चढ़ाई
कर दिया है और उन्होंने बिना फर का बाण मारा और पर्वत
सहित श्री हनुमान जी गिर पड़े, और जब राम राम की आवाज
पीड़ा में श्री हनुमान जी ने लगाया तो श्री भरथ जी पास गए,
"श्री भरथ जी ने कहा कि अगर मैं पूरे तनमन से भईया श्री
राम का सेवक हूं तो ये कपि पूर्ण स्वस्थ्य हो जाय", हनुमान जी
उठकर बैठ गए, हनुमान जी सोचने लगे कि श्री भरथ जी ने
श्री राम प्रभु की सौगंध खाए और मेरी चोट जो बाण से लगी
थी ठीक हो गई, मैं व्यर्थ का वैद्य लाया, और धवला गिरि पर्वत
लाया, अगर मैं भी प्रभु श्री राम का सौगंध खाकर कहता कि
अगर मैं प्रभु श्री राम का तनमन से सेवक हूं तो भईया लक्ष्मण
स्वस्थ्य हो गए होते, धन्य हैं भईया भरथ जी, ये है भईया श्री
भरथ जी की महिमा। जय श्री राम।
©R K Mishra " सूर्य "
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