White छोह, छाया, बादरी क्या-क्या लिखूँ?
आग़ोश की जादूगरी क्या-क्या लिखूँ?
साथ में जो बढ़ रहे थे हर कदम,
गुफ्तगू नजरों भरी क्या-क्या लिखूँ?
खो दिया किश्तों में जो खुद को स्वयं,
इश्क में थी बावरी क्या-क्या लिखूँ?
इश्क ही हारा हमेशा की तरह,
प्रीति लेकिन थी खरी क्या क्या लिखूँ?
लेखनी से भी बड़ा है त्याग ‘अर्जुन',
सूखती मसि-गागरी क्या-क्या लिखूँ?
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
प्रयागराज
(पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित)
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©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
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