White छोह, छाया, बादरी क्या-क्या लिखूँ? आग़ोश की | हिंदी Poetry

"White छोह, छाया, बादरी क्या-क्या लिखूँ? आग़ोश की जादूगरी क्या-क्या लिखूँ? साथ में जो बढ़ रहे थे हर कदम, गुफ्तगू नजरों भरी क्या-क्या लिखूँ? खो दिया किश्तों में जो खुद को स्वयं, इश्क में थी बावरी क्या-क्या लिखूँ? इश्क ही हारा हमेशा की तरह, प्रीति लेकिन थी खरी क्या क्या लिखूँ? लेखनी से भी बड़ा है त्याग ‘अर्जुन', सूखती मसि-गागरी क्या-क्या लिखूँ? अरुण शुक्ल ‘अर्जुन' प्रयागराज (पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित) . ©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'"

 White छोह, छाया, बादरी  क्या-क्या लिखूँ?
आग़ोश की जादूगरी क्या-क्या लिखूँ?

साथ  में  जो  बढ़  रहे  थे  हर कदम,
गुफ्तगू नजरों भरी क्या-क्या लिखूँ?

खो दिया किश्तों में जो खुद को स्वयं,
इश्क में  थी  बावरी क्या-क्या लिखूँ?

इश्क    ही   हारा   हमेशा   की   तरह,
प्रीति लेकिन थी खरी क्या क्या लिखूँ?

लेखनी से  भी बड़ा  है त्याग ‘अर्जुन',
सूखती मसि-गागरी क्या-क्या लिखूँ?
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
प्रयागराज
(पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित)











.

©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'

White छोह, छाया, बादरी क्या-क्या लिखूँ? आग़ोश की जादूगरी क्या-क्या लिखूँ? साथ में जो बढ़ रहे थे हर कदम, गुफ्तगू नजरों भरी क्या-क्या लिखूँ? खो दिया किश्तों में जो खुद को स्वयं, इश्क में थी बावरी क्या-क्या लिखूँ? इश्क ही हारा हमेशा की तरह, प्रीति लेकिन थी खरी क्या क्या लिखूँ? लेखनी से भी बड़ा है त्याग ‘अर्जुन', सूखती मसि-गागरी क्या-क्या लिखूँ? अरुण शुक्ल ‘अर्जुन' प्रयागराज (पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित) . ©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'

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