खुद भी ख़फ़ा रहा मुझको खफा रहने दिया,
पहरों इसी तरह से उसने जुदा रहने दिया...
मुझसे किया भी तर्क-ए-त'अल्लुक़ तो इस तरह,
सारे सितम केे बाद भी कार-ए-वफा रहने दिया..
कैसा अदल रहा कि जब भी मिला मुझे,
मेरा गुरूर छीन कर अपनी अना रहने दिया...
ज़ाहिद तेरी परस्तिश का क्या ही जवाब दूँ,
यानि शराब पी और दिल में खु़दा रहने दिय...
©Murad Ahmad Azmi
khud Bhi kHafa raha Mujhko khafa rahne diya
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