आ अब गांव चलते हैं
माटी में फंसतें हैं
कीचड़ में धसतें हैं
बनावटी अधार से अबद्द
कुदरती धरा में चलते हैं ।
आ अब गांव चलते हैं
कदम असल दामन में रखतें हैं
जीत-हार, फायदा-नुकसान
कीमतों से होकर परे
प्रियता मन के भावों में चलते हैं ।
आ अब गांव चलते हैं
गिरते घटाओं से उड़तें हैं
मस्त मौसम में मंडरातें हैं
तड़पती बारिशों को बक्स
बरसती झरनों के घाटी में चलते हैं ।
- ईशांत मोदी
#myvillage