कितना कुछ अनकहा रह गया
कितना कुछ अनकहा रह गया,
दिल का दिल में ही रह गया.......
लब़ों ने चुप्पी न तोड़ी,
हवाएं भी उदास थी थोड़ी....
बादलों ने भी अठखेलियाॅं छोड़ी।
क्या पता फिर मिलना हो न हो?
ये पल फिर हो न हों,
ग़म अश़्कों में बह गया,
कितना कुछ अनकहा रह गया.....
©Mona Chhabra
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