जैसे माता-पिता की ट्रेन को जाता देखता रह जाता है, | हिंदी कविता

"जैसे माता-पिता की ट्रेन को जाता देखता रह जाता है, स्टेशन पर गलती से छूटा...कोई अबोध बालक, जैसे पाई-पाई जोड़कर खरीदी पतंग के कटने पर, आकाश में जाते देखता रह जाता है...कोई गरीब किशोर, जैसे डोली में प्रेयसी को जाते देखता रह जाता है, अथाह प्रेम से भरा... कोई नवयुवक, जैसे बीमार पत्नी को धीरे-धीरे मृत्यु की ओर, बढ़ते देखता रह जाता है... कोई वृद्ध, वैसे ही बहुत भयावह होता है, लगातार धीरे-धीरे खुद को खोते हुए देखना। ©'नीर'🍁"

 जैसे माता-पिता की ट्रेन को जाता देखता रह जाता है, स्टेशन पर गलती से छूटा...कोई अबोध बालक,

जैसे पाई-पाई जोड़कर खरीदी पतंग के कटने पर,
आकाश में जाते देखता रह जाता है...कोई गरीब किशोर,

जैसे डोली में प्रेयसी को जाते देखता रह जाता है, 
अथाह प्रेम से भरा... कोई नवयुवक,
 
जैसे बीमार पत्नी को धीरे-धीरे मृत्यु की ओर, बढ़ते देखता रह जाता है... कोई वृद्ध,

वैसे ही बहुत भयावह होता है, लगातार धीरे-धीरे खुद को खोते हुए देखना।

©'नीर'🍁

जैसे माता-पिता की ट्रेन को जाता देखता रह जाता है, स्टेशन पर गलती से छूटा...कोई अबोध बालक, जैसे पाई-पाई जोड़कर खरीदी पतंग के कटने पर, आकाश में जाते देखता रह जाता है...कोई गरीब किशोर, जैसे डोली में प्रेयसी को जाते देखता रह जाता है, अथाह प्रेम से भरा... कोई नवयुवक, जैसे बीमार पत्नी को धीरे-धीरे मृत्यु की ओर, बढ़ते देखता रह जाता है... कोई वृद्ध, वैसे ही बहुत भयावह होता है, लगातार धीरे-धीरे खुद को खोते हुए देखना। ©'नीर'🍁

#patience

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