इन बारिश की बूंदों और हवाओं से बेइंतहा मोहब्बत है मुझे,
इनके आती एक अलग खुशी, एक अलग उमंग जग जाती है मेरे अंतर्मन में...
ठीक वैसे ही जैसे कृष्ण को देख झूम उठती थी गोपियां वृंदावन में...
कभी खिड़की से तो कभी छत पर होता है इनसे मिलन मेरा...
खेलती हूं कभी इन बारिश की बूंदों से,
तो कभी इन हवाओं से होती है ढेर सारी मीठी बातें...
कभी अपने आंसुओं को इन बूंदों में छुपाती हूं,
तो कभी अपने दर्द को मैं इन हवाओं से बांटती हूं...
देखें, तो दोनों हैं हमसफर मेरे...
पर तकलीफ इतनी है कि बस कुछ महीनों का होता है साथ हमारा...
फिर हो जाते हैं जुदा हम एक-दूसरे से...
हवा और बारिश तो चल पड़ते हैं अपने नई मंजिल की ओर लेकिन मैं,
मैं फिर बैठ जाती हूं इनके इंतजार में...
कि आएंगे तो फिर होगा मिलना इनसे, खुलेंगे फिर से दिल और मन के ताले...
फिर होगी गुफ्तगू हमारी, भर जाएंगे नैना...जो थे इनके आस में तरसें।
-अंशु
बारिश-हवा और मैं...
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