White रात
क्यू देर रात गए अब तक जगती हो
तकिये पर बिखरी जुल्फें तारे को तकती हो
इन आँखों मे सपनो को समेटी हो
लफ़्ज़ों को बुनती हो
इतनी रात गए कौन सी राह तकती हो
आँखो मे जो ख्वाब पिरोती हो
दिल मे दर्द के सागर रखती हो
देर रात गए जो आहें भर्ती हो
देखो कितने बिखरे-बिखरे लगती हो
दर्द के सागर मे सीप के मोती सी
आँखों मे जो रखती
अपने आँसू से तकिये पर जो तहरीरें लिखती हो
इतनी रात गए क्यों तारों को तकती हो
रात हुई है अब सो भी जाओ
अब इन तारों मे खो भी जाओ
क्यू देर रात गए अब तक जगती हो
तकिये पर बिखरी जुल्फे तारे को तकती हो ।
©Ahmad Raza
#रात