ओ मन मेरे तनिक धीर धर। न हो व्याकुल न तू हो बेसबर।

"ओ मन मेरे तनिक धीर धर। न हो व्याकुल न तू हो बेसबर। लक्ष्य पर ही दृष्टि ध्यान तू रख। वहीं पर हो तेरी अगली सहर। ओ मन ....... भले ही हो दुर्गम हो सूनी डगर। ढूंढ़ लेगी मंजिल को तेरी नज़र। न हार स्वयं से मत टेक घुटनें। विपदा पर टूट तू बन के कहर। ओ मन....... सुधा भारद्वाज "निराकृति" विकासनगर उत्तराखंड"

 ओ मन मेरे तनिक धीर धर।
न हो व्याकुल न तू हो बेसबर।
लक्ष्य पर ही दृष्टि ध्यान तू रख।
वहीं पर हो तेरी अगली सहर।
ओ मन .......
भले ही हो दुर्गम हो सूनी डगर।
ढूंढ़ लेगी मंजिल को तेरी नज़र।
न हार स्वयं से मत टेक घुटनें।
विपदा पर टूट तू बन के कहर।
ओ मन.......

सुधा भारद्वाज "निराकृति"
विकासनगर उत्तराखंड

ओ मन मेरे तनिक धीर धर। न हो व्याकुल न तू हो बेसबर। लक्ष्य पर ही दृष्टि ध्यान तू रख। वहीं पर हो तेरी अगली सहर। ओ मन ....... भले ही हो दुर्गम हो सूनी डगर। ढूंढ़ लेगी मंजिल को तेरी नज़र। न हार स्वयं से मत टेक घुटनें। विपदा पर टूट तू बन के कहर। ओ मन....... सुधा भारद्वाज "निराकृति" विकासनगर उत्तराखंड

#धीर(Dheer)

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