उसको लिखा ही नहीं था हमारे हाथों के लकीरों में । भ | हिंदी Shayari

"उसको लिखा ही नहीं था हमारे हाथों के लकीरों में । भला कब तक बांधता उसे मोहब्बत के जंजीरों में । बात पेशा की नहीं पैसों की थी उसने ऐसा कहा बहुत फ़र्क होता है जान, डॉक्टर और शायरों में । ©Priyanshu Sunny"

 उसको लिखा ही नहीं था हमारे हाथों के लकीरों में ।
भला कब तक बांधता उसे मोहब्बत के जंजीरों में ।

बात पेशा की नहीं पैसों की थी उसने ऐसा कहा 
बहुत फ़र्क होता है जान, डॉक्टर और शायरों में ।

©Priyanshu Sunny

उसको लिखा ही नहीं था हमारे हाथों के लकीरों में । भला कब तक बांधता उसे मोहब्बत के जंजीरों में । बात पेशा की नहीं पैसों की थी उसने ऐसा कहा बहुत फ़र्क होता है जान, डॉक्टर और शायरों में । ©Priyanshu Sunny

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उसको लिखा ही नहीं था हमारे हाथों के लकीरों में ।
भला कब तक बांधता उसे मोहब्बत के जंजीरों में ।

बात पेशा की नहीं पैसों की थी उसने ऐसा कहा
बहुत फ़र्क होता है जान, डॉक्टर और शायरों में ।

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