हड़ताल से धरने तक का,
सफर आसां नहीं होता ।
कुछ तो समझिए हुजूर,
बेवजह कभी बंद नहीं होता ।।
बिल से कानून बनने का,
सफर आसां नहीं होता ।
कुछ तो खामियाँ रही है ज़नाब,
वरना बेवजह कभी बंद नहीं होता ।।
प्रदर्शन से चक्का जाम तक का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
सावधानी तो हटी होगी दोस्तों,
वरना इतना बड़ा हादसा नहीं होता।।
दिल के दर्द का अश्कों में बहने का,
चिर कलेजा,दर्द का लबों पर आने का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
कुछ तो टूटे होंगे दिल ज़नाब वरना,
वरना बेवजह कभी बंद नहीं होता ।।
घर से निकलकर फिर वापसी का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
राहे ज़िन्दगी में कुछ खोकर तलाशने का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
कुछ तो टूटी होगी इनकी भी उम्मीदें,
वरना आम आदमी कभी सड़कों पर नहीं होता।
जरा फिर से सोचो तो,बेवजह कभी बंद नहीं होता।।
गनी खान
मुड़तरा सिली(जालोर)
राजस्थान 307803
मोबाइल 9461253663
©GANI KHAN
#बंद