White किसी का इश्क़ किसी का ख़याल थे हम भी
गए दिनों में बहुत बाकमाल थे हम भी
हमारी खोज में रहती थीं तितलियां अक्सर
कि अपने शहर का हुस्नो जमाल थे हम भी
ज़मीं की गोद में सर रख के सो गए आख़िर
तुम्हारे इश्क़ में कितने निढाल थे हम भी
ज़रूरतों ने हमारा ज़मीर चाट लिया
वगरना क़ायल ए रिज़्क़ ए हलाल थे हम भी
हम अक्स अक्स बिखरते रहे इसी धुन में
कि ज़िंदगी में कभी लाजवाल थे हम भी
~ परवीन शाकिर
©Jitender Kumar
#sad_shayari
किसी का इश्क़ किसी का ख़याल थे हम भी
गए दिनों में बहुत बाकमाल थे हम भी
हमारी खोज में रहती थीं तितलियां अक्सर
कि अपने शहर का हुस्नो जमाल थे हम भी