निकला था दाने की तलाश में एक  परिंदा पर कौन जानता | हिंदी Poetry

"निकला था दाने की तलाश में एक  परिंदा पर कौन जानता था कि न लौट पाएगा घर को वो जिंदा पतंग का मंजा फंसा था गले में उसके आस लगाए बैठे थे बच्चे उसके कट गई ग्रीवा निकल गए उसके प्राण भूखे प्यासे रह गए वो बच्चे नादान हमारी कुछ पल की खुशियों ने कर दिया उनको अनाथ त्याग दो वो चीज जिससे छूट जाए किसी का साथ ©Ankit yadav"

 निकला था दाने की तलाश में एक  परिंदा

पर कौन जानता था कि न लौट पाएगा घर को वो जिंदा

पतंग का मंजा फंसा था गले में उसके

आस लगाए बैठे थे बच्चे उसके

कट गई ग्रीवा निकल गए उसके प्राण

भूखे प्यासे रह गए वो बच्चे नादान

हमारी कुछ पल की खुशियों ने कर दिया उनको अनाथ

त्याग दो वो चीज जिससे छूट जाए किसी का साथ

©Ankit yadav

निकला था दाने की तलाश में एक  परिंदा पर कौन जानता था कि न लौट पाएगा घर को वो जिंदा पतंग का मंजा फंसा था गले में उसके आस लगाए बैठे थे बच्चे उसके कट गई ग्रीवा निकल गए उसके प्राण भूखे प्यासे रह गए वो बच्चे नादान हमारी कुछ पल की खुशियों ने कर दिया उनको अनाथ त्याग दो वो चीज जिससे छूट जाए किसी का साथ ©Ankit yadav

#swiftbird

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