इतनी मोहब्बत तो मत करो
बेबाक
वो किसी और मंज़िल का
मुसाफ़िर ही सही
तुम को कोई तवज्जो,फ़िक्र ओ चाह भी
हासिल ना सही
क्यों देना है,कोई इल्ज़ाम उस को
उसकी कोई झलक,मौजूदगी,लफ्ज़ सब
ला-हासिल भी सही
मुझ को इस बात का बाक़ी हैं गुमा
मैने बेहद मासूमियत से चाहा हैं उसे
उस को इस बात से
गुरेज़ ओ अदीब मुमकिन ना सही
ज़िंदगी यू भी कई ख्वाइशों की
क़ब्र तो हैं
दो चार और ज़ुस्तज़ू
इसमें मुलव्विस भी सही
मुझ में भी ऐब कम नहीं बाक़ी
फ़िर खामियां उस में मुन्तजिर हैं सही
अब क्यों इतना फ़साद करना हैं
वो हर हाल मेरा सही है तो हैं
मैं किसी हाल भी
उसका सही मुमकिन ना सही...
उस की बाबत मुझे ना हासिल हो
इश्क़ मेरा इकतरफा ही सही...
©ashita pandey बेबाक़
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