Unsplash रात के अंधेरे में, बालकनी में खड़े | हिंदी कविता

"Unsplash रात के अंधेरे में, बालकनी में खड़े होकर चाय की चुस्की लेते ही चश्मे पे जमे हुए भाप ने मुझसे कहा, "अंधेरा थोड़ा धुंधला ही अच्छा लगता है।" उसकी सुनता, पर इतने में ही रात की ख़ामोशी बोल पड़ी, "अरे, मुझे बाहर क्या ढूंढता है, मैं तो तेरे अंदर भी हूँ।" तो मैंने उससे पूछा, "अच्छा मुझमें,पर मुझमें कहाँ?" तो बोलती है, "जरा दिल की गहराइयों में उतर के तो सुन, ख़ामोशी हूँ, मेरा एक अलग शोर होता है।" मैं ख़ामोशी की बात सुन ही रहा था, इतने में बालकनी से गुजरती ठंडी हवा ने कहा, "अरे, जनाब पहले चाय तो पी लिजिये, वरना इस अंधेरी रात में खामखा मुझपे इल्ज़ाम लग जाएगा।" बस इतने में ही गुजरते हुए वक़्त ने कहा, "बस कीजिए भाईसाहब, फिर लोग दुनिया को दोष देते हैं, जबकी वक़्त तो अकेलापन बर्बाद कर देता है।" ©Abhishek Jha"

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रात के अंधेरे में,
बालकनी में खड़े होकर
चाय की चुस्की लेते ही
चश्मे पे जमे हुए भाप ने मुझसे कहा,
"अंधेरा थोड़ा धुंधला ही अच्छा लगता है।"

उसकी सुनता, पर इतने में ही
रात की ख़ामोशी बोल पड़ी,
"अरे, मुझे बाहर क्या ढूंढता है,
मैं तो तेरे अंदर भी हूँ।"

तो मैंने उससे पूछा,
"अच्छा मुझमें,पर मुझमें कहाँ?"
तो बोलती है,
"जरा दिल की गहराइयों में उतर के तो सुन,
ख़ामोशी हूँ, मेरा एक अलग शोर होता है।"

मैं ख़ामोशी की बात सुन ही रहा था,
इतने में बालकनी से गुजरती ठंडी हवा ने कहा,
"अरे, जनाब पहले चाय तो पी लिजिये,
वरना इस अंधेरी रात में खामखा मुझपे इल्ज़ाम लग जाएगा।"

बस इतने में ही गुजरते हुए वक़्त ने कहा,
"बस कीजिए भाईसाहब,
फिर लोग दुनिया को दोष देते हैं,
जबकी वक़्त तो अकेलापन बर्बाद कर देता है।"

©Abhishek Jha

Unsplash रात के अंधेरे में, बालकनी में खड़े होकर चाय की चुस्की लेते ही चश्मे पे जमे हुए भाप ने मुझसे कहा, "अंधेरा थोड़ा धुंधला ही अच्छा लगता है।" उसकी सुनता, पर इतने में ही रात की ख़ामोशी बोल पड़ी, "अरे, मुझे बाहर क्या ढूंढता है, मैं तो तेरे अंदर भी हूँ।" तो मैंने उससे पूछा, "अच्छा मुझमें,पर मुझमें कहाँ?" तो बोलती है, "जरा दिल की गहराइयों में उतर के तो सुन, ख़ामोशी हूँ, मेरा एक अलग शोर होता है।" मैं ख़ामोशी की बात सुन ही रहा था, इतने में बालकनी से गुजरती ठंडी हवा ने कहा, "अरे, जनाब पहले चाय तो पी लिजिये, वरना इस अंधेरी रात में खामखा मुझपे इल्ज़ाम लग जाएगा।" बस इतने में ही गुजरते हुए वक़्त ने कहा, "बस कीजिए भाईसाहब, फिर लोग दुनिया को दोष देते हैं, जबकी वक़्त तो अकेलापन बर्बाद कर देता है।" ©Abhishek Jha

रात के अँधेरे में

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