तुम कब साथ से, सिर्फ दिल में रह गई पता न चला। तुम | हिंदी कविता

"तुम कब साथ से, सिर्फ दिल में रह गई पता न चला। तुम कब हकीकत से, ख्वाब बन गई पता न चला। कभी हर पल साथ होती थीं, सुरक्षा कवच की तरह हर बुराई से बचाती, तो कभी उलझन में पड़ने पर सही रास्ता दिखाती थी, कभी गिर पड़ती तो चोट पर मरहम लगाती और फिर से खड़े होने का हौसला देती। कभी डांट कर, तो कभी दुलार करके, अपनी परवाह और प्यार लुटाती। कब वो ममता भरा हाथ दूर हो गया, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला। जब कभी आंखों में आंसू आते, तो अपने सीने से लगा लेती और अपने आंचल से आंसू पोंछ कर खूब लाड़ करती, कभी बेचैन होती तो अपनी गोद में सुला कर, ममता भरा हाथ सिर में फेर देती उस सुकून, उस गोद के लिए, कब तड़पने लगे पता न चला। तुम कब हकीकत से, ख्वाब बन गई पता न चला। कभी-कभी बातों ही बातों में जिंदगी की बड़ी से बड़ी सीख दे दे जाती, तो कभी कहानी के रूप में बड़ी से बड़ी समस्या का हल बता देती, जब कभी अनजाने या नादानी में, कोई गलती या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते, तो प्यार से अपने पास बुला कर समझाती, जिंदगी जीने का सलीका सिखा कर कब खुद बहुत दूर चली गई, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला कभी लगता है कल ही की तो बात थी, जब सब साथ हंसते खेलते और शैतानियां करते थे और आप हमें डांट दिया करती थी, कब वो पल सिर्फ याद बन कर रह गए, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला। तुम कब साथ से सिर्फ दिल में रह गई, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्बाव बन गई, पता न चला। ©Pragati Pushparaj"

 तुम कब साथ से, सिर्फ दिल में रह गई पता न चला।
तुम कब हकीकत से, ख्वाब बन गई पता न चला।
कभी हर पल साथ होती थीं,
 सुरक्षा कवच की तरह हर बुराई से बचाती,
तो कभी उलझन में पड़ने पर सही रास्ता दिखाती थी,
कभी गिर पड़ती तो चोट पर मरहम लगाती और फिर से खड़े होने का हौसला देती।
कभी डांट कर, तो कभी दुलार करके, अपनी परवाह और प्यार लुटाती।
कब वो ममता भरा हाथ दूर हो गया, पता न चला।
तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला।
जब कभी आंखों में आंसू आते,
 तो अपने सीने से लगा लेती
और अपने आंचल से आंसू पोंछ कर खूब लाड़ करती,
कभी बेचैन होती तो अपनी गोद में सुला कर, ममता भरा हाथ सिर में फेर देती
उस सुकून, उस गोद के लिए, कब तड़पने लगे पता न चला।
तुम कब हकीकत से, ख्वाब बन गई पता न चला।
कभी-कभी बातों ही बातों में जिंदगी की बड़ी से बड़ी सीख दे दे जाती,
तो कभी कहानी के रूप में बड़ी से बड़ी समस्या का हल बता देती,
जब कभी अनजाने या नादानी में, कोई गलती या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते,
तो प्यार से अपने पास बुला कर समझाती,
जिंदगी जीने का सलीका सिखा कर कब खुद बहुत दूर चली गई, पता न चला।
तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला
कभी लगता है कल ही की तो बात थी,
जब सब साथ हंसते  खेलते और शैतानियां करते थे और आप हमें डांट दिया करती थी,
कब वो पल सिर्फ याद बन कर रह गए, पता न चला।
तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला।
तुम कब साथ से सिर्फ दिल में रह गई, पता न चला।
तुम कब हकीकत से ख्बाव बन गई, पता न चला।

©Pragati Pushparaj

तुम कब साथ से, सिर्फ दिल में रह गई पता न चला। तुम कब हकीकत से, ख्वाब बन गई पता न चला। कभी हर पल साथ होती थीं, सुरक्षा कवच की तरह हर बुराई से बचाती, तो कभी उलझन में पड़ने पर सही रास्ता दिखाती थी, कभी गिर पड़ती तो चोट पर मरहम लगाती और फिर से खड़े होने का हौसला देती। कभी डांट कर, तो कभी दुलार करके, अपनी परवाह और प्यार लुटाती। कब वो ममता भरा हाथ दूर हो गया, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला। जब कभी आंखों में आंसू आते, तो अपने सीने से लगा लेती और अपने आंचल से आंसू पोंछ कर खूब लाड़ करती, कभी बेचैन होती तो अपनी गोद में सुला कर, ममता भरा हाथ सिर में फेर देती उस सुकून, उस गोद के लिए, कब तड़पने लगे पता न चला। तुम कब हकीकत से, ख्वाब बन गई पता न चला। कभी-कभी बातों ही बातों में जिंदगी की बड़ी से बड़ी सीख दे दे जाती, तो कभी कहानी के रूप में बड़ी से बड़ी समस्या का हल बता देती, जब कभी अनजाने या नादानी में, कोई गलती या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते, तो प्यार से अपने पास बुला कर समझाती, जिंदगी जीने का सलीका सिखा कर कब खुद बहुत दूर चली गई, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला कभी लगता है कल ही की तो बात थी, जब सब साथ हंसते खेलते और शैतानियां करते थे और आप हमें डांट दिया करती थी, कब वो पल सिर्फ याद बन कर रह गए, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्वाब बन गई, पता न चला। तुम कब साथ से सिर्फ दिल में रह गई, पता न चला। तुम कब हकीकत से ख्बाव बन गई, पता न चला। ©Pragati Pushparaj

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