लम्हे लम्हे अति सूक्ष्म में मिलना वहा।
आज, कल ,पल, लम्हे की दूरी भी सदियां है कंज।
जलजात सच तो ये की उस जहां में मिलेंगे हम।
ना तुम्हे जल्दी होगी जाने की न मुझे कुछ काम होगा।
रंग सारे जहा के होंगे वहां जहन में न कोई मलाल होगा।
शायद तब ना कोई सवाल न कोई जवाब होगा।
तुम तुम्हारी सादगी जीवन फिर तुम पर निसार होगा।
होगा वही बाग जहा सपनो के फूल खिले होगे।
चुन चुन कर सपने तुम्हारी नीद मे भरेंगे तारे।
हवा तुम्हारी सांसों से महकेगी वहा उस जहां मे भी।
हसीं से खिलेगा तुम्हारी दूर जहा के कमल प्यारी।
सदियों तक रहेगी ठंड मे लिपटी शाम इंतजार मे तुम्हारे।
रास्ते तुम्हारे हर कदम पर मंजिल पाएंगे।
लम्हे लम्हे अति सूक्ष्म मे मिलना वहा।
©Neeraj Singh B
#humantouch