मैं रेत पर रात को लिख रही थी मैं रेत पर रात को

"मैं रेत पर रात को लिख रही थी मैं रेत पर रात को लिख रही थी कुछ बुझी सी कुछ थमी सी थी हाथ कांप से रहे थे दांत किटकिटा रहे थे ध्यान से लिखना चाह रही थी कुछ सीखना चाह रही थी मैं समुद्र किनारे ही थी मेरी यात्रा का आरम्भ था मैं पार करके किनारे नहीं आई थी अभी पार करके जाना था तैरना नहीं आता था इसलिए मैं किनारे बैठ कर लिख रही थी। प्रीती अमित गुप्ता"

 मैं रेत पर रात को लिख रही थी


मैं रेत पर रात को 
लिख रही थी
कुछ बुझी सी 
कुछ थमी सी थी  
हाथ कांप से रहे थे 
दांत किटकिटा रहे थे 
ध्यान से लिखना 
चाह रही थी
कुछ सीखना 
चाह रही थी मैं
समुद्र किनारे ही थी 
मेरी यात्रा का  आरम्भ था
मैं पार करके किनारे 
नहीं आई थी
अभी पार 
करके जाना था 
तैरना नहीं आता था 
इसलिए मैं
किनारे बैठ कर
लिख रही थी।


प्रीती अमित गुप्ता

मैं रेत पर रात को लिख रही थी मैं रेत पर रात को लिख रही थी कुछ बुझी सी कुछ थमी सी थी हाथ कांप से रहे थे दांत किटकिटा रहे थे ध्यान से लिखना चाह रही थी कुछ सीखना चाह रही थी मैं समुद्र किनारे ही थी मेरी यात्रा का आरम्भ था मैं पार करके किनारे नहीं आई थी अभी पार करके जाना था तैरना नहीं आता था इसलिए मैं किनारे बैठ कर लिख रही थी। प्रीती अमित गुप्ता

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